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कविता: कुछ इतिहास की यादें

कुछ इतिहास की यादें घर घर जय श्री प्रभु राम का गूंज उठा जयकारा है, और राम तो झांकी है, शिव-कृष्ण ने भी हुंकारा है। सदियों के आघातों से अब हिंदू-चेतना दहक उठी, प्रबल शास्त्र के साथ अब सबने शस्त्र की पुकार सुनी। घोरी, बाबर, औरंगज़ेब अब मिट्टी में मिल जाएगा, जिसने आँख उठा कर देखा वो नेत्रहीन हो जाएगा। शांति, प्रेम और भाईचारे की सीमा अब तो गुज़र गई, वेदना रोते-रोते अब आँखें आंसू के लिए तरस गई। इतिहास की ज़ंजीरों से मुक्ति कब मिल पाएगी? कब फिर मीरा अपने कृष्ण के संग झूमने जाएगी? बलिदानों के सैलाब, रक्त की नदियों को तुम स्मरण करो, अब तो मिमियाना छोड़ो, अब तो शेर की भाँति गरज पड़ो। भाई कौन, चारा कौन, ख़ुद से अब फिर पूछो तुम, अब तो बेड़ियाँ तोड़ दो, मेरी भारती के सपूतों तुम! धर्मवीर को धर्म मानकर सीता भाँति पुकारो तम से, मस्जिद जहां बनीं है, पुष्प चढ़ाओ वहीं तुम मन से, फिर दिन ऐसा आएगा की ये भारत अयोध्या बन जाएगा, और धर्मवीर मंदिर बनवाकर सत्ता ठुकरा जाएगा, उस दिन मेरे भारत की गली-गली वृंदावन बन जाएगी, और हिंदू चेतना फिर से प्रेममयी हो जाएगी, इन घावों को भरने में जब सब भाईचारा दिखलायेंगे, तब जा...